प्रस्तावना
प्रतिवर्ष विश्वभर के दर्जनों नगरों की सड़कों पर, जिनमें लॉस ऐंजलिस, न्यूयार्क, वाशिंगटन, ऑकलैंड, कलकत्ता, पेरिस तथा लन्दन शामिल हैं; सारे ब्रह्माण्ड के स्वामी भगवान् जगन्नाथ के भव्य रूप से अलंकृत रथ निकाले जाते हैं। जब हर्षोल्लास से भरे उत्सव में ढोल तथा मजीरे गूंज उठते हैं, तो इन रथों के ऊँचे ऊँचे लाल नीले रेशमी मंडप आकाश को चूमने लगते हैं। युवा तथा वृद्धों की आँखें उत्तेजना से चमक उठती हैं और वे सड़कों पर नाचते-गाते हैं, मानो वे सुख के अगाध सागर में तैर रहे हों।
रथयात्रा उत्सव, जो कि भारत से बाहर के देशों के लिए नवीन है, संभवतः लगातार मनाए जाने वाला विश्व का प्राचीनतम आध्यात्मिक उत्सव है। जहाँ तक मनुष्य की इतिवृत्ति और स्मृति जाती है, लाखों हर्षोल्लसित तीर्थयात्रियों को प्रमुदति करने के लिए, बंगाल की खाड़ी पर स्थित पुरी नामक नगर में भगवान् जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती रही है।
भगवान् जगन्नाथ के अर्चाविग्रह की पूजा पुरी नगर के विशाल मन्दिर में वर्षभर चलती रहती है। पत्थर की शिलाओं से निर्मित इस मन्दिर का उन्नत शिखर समग्र पुरी नगर पर छा जाता है। यह अर्चाविग्रह कोरी स्थूल प्रतिमा नहीं है। भगवान् अपने भक्तों की प्रेमाभक्ति स्वीकार करने के लिए ही अपनी परम शक्ति द्वाराअर्थाविग्रह के भीतर प्रविष्ट होते हैं। इस तरह से अर्थाविग्रह भगवान से अभिन्न है। भगवान जगन्नाथ वर्ष में एक बार रथयात्रा का आनन्द उठाने तथा सबों को दर्शन देने के लिए अपने भव्य रूप में बाहर निकलते हैं।
यह विशिष्ट अर्चाविग्रह किस तरह से पुरी के विशाल मंदिर में स्थापित किया गया. इसकी कहानी अत्यन्त गूढ़ है। हजारों वर्ष पूर्व इन्द्रद्युम्न नामक राजा ने इच्छा व्यक्त की कि ऐसा कोई कलाकार हो, जो भगवान् कृष्ण, उनके भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा के विशिष्ट अर्चाविग्रह तैयार करे। स्वर्गलोक के शिल्पी एवं कलाकार विश्वकर्मा इस शर्त पर अर्चाविग्रह तैयार करने के लिए राजी हुए। कि उनके कार्य में कोई व्यवधान नहीं डालेगा। राजा ने यह प्रस्ताव मान लिया और विश्वकर्मा ने एक बन्द कमरे में अर्चाविग्रह तैयार करना प्रारम्भ कर दिया। किन्तु कार्य की मन्द गति से अधीर होकर राजाने एक बार यह देखने के लिए कमरे में प्रवेश किया कि कार्य में कितनी प्रगति हुई है। उसी क्षण विश्वकर्मा तीनों अर्चाविग्रहों को अधूरा छोड़कर वहाँ से अदृश्य हो गये। किन्तु राजा इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने इन अधूरे अर्चाविग्रहों को एक विशाल मन्दिर में स्थापित करा दिया और बड़ी धूमधाम से उनकी पूजा की। राजा प्रतिवर्ष एक विशाल शोभायात्रा की व्यवस्था करते. जिसमें तीनों अर्चाविग्रहों को एक सुन्दर सजाये हुए रथ पर आसीन करके निकाले जाते थे।
तत्पश्चात्, ५०० वर्ष पूर्व यह उत्सव श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का केन्द्र बन गया। श्री चैतन्य साक्षात् भगवान् कृष्ण हैं. जो भगवान् के महान् भक्त के वेश में प्रकट हुए। श्री चैतन्य प्रति वर्ष अपने संगियों सहित रथयात्रा उत्सव के समय नाचते और हरिकीर्तन करते रहते। आज भी श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुयायीपुरी में तथा भारत के अन्य स्थानों में निकाली जाने वाली रथयात्रा में बड़ी उत्सुकता के साथ भाग लेते हैं। वैदिक शास्त्रों की उक्ति है कि जो भी भगवान् जगन्नाथ का दर्शन करता है या उनके रथ को खींचता है, वह असीम आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करता है।
इस शताब्दी के प्रारम्भ में कलकत्ता के एक किशोर ने जब अपने पड़ोस में रथयात्रा का एक लघुरूप प्रदर्शित करना चाहा, तो उसके पिता उसे रथ खरीदने के लिए बाजार ले गये, किन्तु स्थानीय काष्ठकारों ने जितना मूल्य माँगा, उतना वे दे नहीं सकते थे। अतः बालक रास्ते में रोने लगा। जब एक वृद्धा बंगाली महिला को बालक के रोने का कारण ज्ञात हुआ, तो उसने इस बालक तथा उसके पिता को अपना पुराना रथ देने का प्रस्ताव किया। रथ को स्वीकार करके उसे ले जाकर उन्होंने (पिता तथा पुत्र ने) उसकी मरम्मत की और उसे पुरी रथयात्रा उत्सव के मूल रथ की ही तरह सजाया। पड़ोस की महिलाओं ने भोज के लिए पकवान बनाने की हामी भर दी तो उस बालक ने अपने मित्रों, सम्बन्धियों तथा पड़ोसियों को प्रमुदित करने के लिए अपना रथयात्रा उत्सव मनाया।
बाद में यही बालक बड़ा होकर कृष्णकृपामूर्ति ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद बना, जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की। श्रील प्रभुपाद, शुद्ध कृष्णभावनामृत को पहली बार भारत से बाहर विश्वभर में ले जाने वाले, श्री चैतन्य महाप्रभु की परम्परा में ग्यारहवें आचार्य हैं। अपने जीवन के अन्तिम १२ वर्षों में, १९६५ से १९७७ तक, प्रचार कार्य के सिलसिले में उन्होंने पहले अमरीका की यात्रा की और फिर पूरे विश्व में लगातार परिभ्रमण कर के विश्वव्यापी आध्यात्मिक क्रान्ति की शुरूआत की, जो आन्दोलन आज भी बढ़ता जा रहा है। श्रील प्रभुपाद ने एक सौसे अधिक मन्दिरों की स्थापना की, दर्जनों पुस्तकें लिखीं, और हजारों शिष्यों को दीक्षा दी। और इन सबके साथ-साथ उन्होंने रथयात्रा उत्सव की शुरूआत की, जो उन्हें अत्यन्त प्रिय था।
श्रील प्रभुपाद ने पश्चिमी देशों में प्रथम स्थल के रूप में वार्षिक रथयात्रा समारोह के लिए सैन फ्रांसिस्को को चुना और अपने शिष्यों को आदेश दिया, “तुम लोग इस रथयात्रा को मुख्यमार्ग पर निकालना। इसे भव्य रीति से सम्पन्न करना। जगन्नाथ पुरी में ऐसी ही रथयात्रा प्रतिवर्ष निकाली जाती है। उनकी पहली रथयात्रा बहुत ही सादे ढंग से निकली भगवान् जगन्नाथ, बलराम तथा सुभद्रा के अर्चाविग्रहों को एक छोटे सपाट ट्रक पर रखकर हैट ऐशबरी क्षेत्र की सड़कों से होकर निकाला गया, जिसके साथ में कीर्तन तथा नृत्य होता रहा।
बाद के वर्षों में भक्तों ने पुरी रथयात्रा जैसे ही रथ तैयार किये। तत्पश्चात् शीघ्र ही श्रील प्रभुपाद के निर्देशन में विश्वभर के शहरों में रथयात्रा उत्सव मनाया जाने लगा। भारत में प्रतिवर्ष हरे कृष्ण आन्दोलन द्वारा कलकत्ता में जो रथयात्रा निकाली जाती है, वह मानो पुरी के समकक्ष होती है। श्रील प्रभुपाद के शिष्यों द्वारा आयोजित इन रथयात्राओं में लाखों लोगों ने भाग लिया है।
समस्त रथयात्रा – उत्सवों में ब्रह्माण्ड के स्वामी, उनके भाई बलराम तथा उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियों की अधीक्षता रहती है। ये अर्चाविग्रह कौन हैं, ये किस तरह प्रकट हुए और ये किनका प्रतिनिधित्व करते हैं? इन सबकी कथा तमालकृष्ण गोस्वामी भगवान् जगन्नाथ नाटक में शास्त्रीय संस्कृत नाटक के नियमों के अनुसार बताते हैं।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के डॉ. गैरी टब कहते हैं, “तमालकृष्ण गोस्वामी द्वारा लिखित भगवान जगन्नाथ नाटक में नाटक की ऐसीरोचक कृति प्राप्त होती है, जो अंग्रेजी में रचित होते हुए भी संस्कृत नाट्यकला की सारी आवश्यकताओं को पूरा करती है।” डॉ. टब के अनुसार, “अंग्रेजी में रचित यह पहला नाटक है, जो संस्कृत परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है। तमालकृष्ण गोस्वामी ने ऐसा रोचक साधन प्रदान किया है, जिससे उनकी परम्परा के आदर्शों तथा आनन्द को ऐसे रूप में जाना जा सकता है, जो प्रामाणिक तथा बोधगम्य है।”
हमारा विश्वास है कि जो भी इस नाटक को पढ़ेगा, वह भक्ति का गोपनीय रस तथा आराधना विधि का अद्वितीय ज्ञान प्राप्त कर सकेगा, जो रथयात्रा के रंगारंग प्रदर्शन के पीछे निहित है।
krishna (verified owner) –
I recommend this to everyone to read.
priyanka (verified owner) –
easy to understand and read.
shyam (verified owner) –
The product is firmly packed.
johar (verified owner) –
I recommend this to everyone to read.
antarika (verified owner) –
The product is firmly packed.
priya krishna das (verified owner) –
Very well worth the money.
Karan (verified owner) –
Very well worth the money.
Prakhar Agrawal (verified owner) –
Aniket Tandi (verified owner) –
मै नै हाल ही मै भगवान जगन्नाथ नाटक पुस्तक पडी यह अत्यंत आनंद दायक है ,भगवान जगन्नाथ के प्राकटय की जानकारी प्रदान करती हैं, मै हमेशा से पुरी की जानकारी प्राप्त करना चाहता था, श्री तमाल कृष्ण गोस्वामी अपका धन्यवाद हरे कृष्ण!
Rathijeet Bhattacharya (verified owner) –