प्रकृति की सरलता, सौंदर्य तथा गूढ़ता ने सभी महान् दार्शनिकों के मन तथा हृदय को मंत्रमुग्ध किया है। भारत के कालातीत वैदिक साहित्य के विस्तीर्ण खजाने में श्रीमद् भागवत सर्वोत्कृष्ट एवं बहुमूल्य है, क्योंकि यह आध्यात्मिक सत्य के सार को सुन्दर काव्यमय श्लोकों द्वारा प्रस्तुत करता है। श्रीमद् भागवत के दसवें स्कन्ध में भारत की शरद ऋतु का वर्णन आता है, जिसका उपयोग दिव्य ज्ञान के विभिन्न पहलूओं को चित्रित करने के लिए एक समानान्तर उपमा के रूप में किया गया है। उदाहरणार्थ, जब एक भी सितारा दिखाई नहीं देता है, ऐसी बरसाती शरत्कालीन मेघाच्छादित संध्या की तुलना वर्तमान ईश्वर विहीन भौतिकतावादी सभ्यता से की गई है, जब धर्मग्रन्थ तथा भक्तजन रूपी भागवत की प्रज्ञा के देदीप्यमान तारागण अस्थायी रूप से आच्छादित हो जाते हैं।
भागवत का प्रकाश’ में चित्रों के लिखी श्रील प्रभुपाद की व्याख्याओं में विश्व की दो प्राचीनतम सांस्कृतिक परम्पराओं- भारतीय तथा चीनी- का अद्वितीय मिश्रण झलकता है।
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