इस भौतिक जगत में युगों युगों से अनेक अवतार प्रकट हुए है, किन्तु इनमें से किसी ने गौर अवतार श्रीचैतन्य महाप्रभु के समान भगवत्प्रेम का इतनी उदारता से वितरण नहीं किया है।
भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु बंगाल में ई. १४८६ में प्रकट हुए। यद्यपि उन्होंने केवल ४८ वर्षों तक लीलाएँ प्रदर्शित की, फिर भी उन्होंने मनुष्य समाज की आध्यात्मिक चेतना में क्रान्ति ला दी, जिससे लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हुआ। वे उनकी युवावस्था में भी प्रसिद्ध विद्वान थे। उन्होंने सारे भारतवर्ष में भूली हुई प्राचीन आध्यात्मिक चेतना की शिक्षा देने के लिए २४ वर्ष की आयु में अपने परिवार का त्याग किया और संन्यास आश्रम ग्रहण किया। यद्यपि वे स्वयं पूर्ण रूप से विरक्त संन्यासी थे, फिर भी उन्होंने सीखाया कि किस तरह मनुष्य अपने घर, व्यवसाय तथा सामाजिक व्यवहारों से सम्बन्धित रहते हुए भी आध्यात्मिक चेतना का विकास कर सकता है। इस प्रकार उनकी शिक्षा यद्यपि समय से परे हैं, फिर भी यह आज के विश्व के लिए विशेषतया अनुरूप है। उन्होंने ऐसी व्यावहारिक प्रक्रिया सीखाई, जिसका कोई भी मनुष्य प्रत्यक्ष रूप से पालन कर सकता है और शुद्ध भगवत्प्रेम की ऊर्मि की अनुभूति कर सकता है। यह पुस्तिका इस महान् अवतार की असामान्य लीलाओं का वर्णन करती है और उनकी शिक्षाओं का सार प्रस्तुत करती है।
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