असीम आनंद .
सदियों से, पौर्वात्य तथा पाश्चिमात्य इन दोनों संस्कृतियों के महात्माओं ने हमें सिखाया है कि, हमें पूर्ण, शुद्ध और नित्य आनंद तभी प्राप्त हो सकता है, जब हम भगवान् से प्रेम करना सीखते हैं। भक्तियोग का विज्ञान हमें ऐसा करना सिखाता है और इसमें वैदिक ऋषी नारद से बड़ा और कोई गुरु नहीं है।
नारद मुनी के रत्नसमान भक्ति के चौरासी सूत्र, जिन्हें नारद-भक्ति-सूत्र कहा जाता है, भगवत्प्रेम के रहस्य प्रकट करते हैं-भगवत्प्रेम क्या है और क्या नहीं; उसके परिणाम क्या हैं, इस मार्ग में सहायता करने वाले तथा बाधा डालने वाले तत्त्व कौन से हैं तथा अन्य बहुत कुछ। जीवन के अंतिम लक्ष्य की खोज करनेवाले साधकों के लिए नारद-भक्ति-सूत्र अत्यावश्यक है।
नारद-भक्ति-सूत्र के प्रथम भाग में कृष्णकृपामूर्ति ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद की टीका समाविष्ट है, जिन्हें विश्वभर के विद्वानों तथा आध्यात्मिक नेताओं ने भारतीय संस्कृती के आधुनिक राजदूत के रूप में मान्यता दी है। द्वितीय भाग को श्रील सत्स्वरूप दास गोस्वामी ने स्पष्ट किया है, जो श्रील प्रभुपाद के वरिष्ठ शिष्यों में से एक हैं तथा जो भक्तितत्व के पचीस से अधिक पुस्तकों के लेखक रह चुके हैं।
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