यह किताब एक ऐसी मार्गदर्शिका है, जो पाँच शताब्दियों से चले आ रहे सार रूप आध्यात्मिक ज्ञान को प्रस्तुत करती है। किस प्रकार गुरु को स्वीकार करना चाहिए, किस प्रकार योग साधना करनी चाहिए, कहाँ निवास करना चाहिए इत्यादि सभी प्रकार के निर्देश आप इस अनमोल किताब में पायेंगे, जो मूल रूप से मध्यकालीन भारत के महानतम आध्यात्मिक प्रतिभाशाली सन्त श्रील रूप गोस्वामी द्वारा संस्कृत में लिखी गई है।
अब श्रील रूप गोस्वामी की गुरु-शिष्य परम्परा में आने वाले उनके आधुनिक उत्तराधिकारी श्री श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद द्वारा भाषांतरित की गई और समझाई गई यह पुस्तिका श्रीउपदेशामृत आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करने के मार्ग पर अग्रसर सारे साधकों को प्रकाश प्रदान “करने के लिए प्रस्तुत है।
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