सदियों से बहुत से अवतार- दैवी शक्तियों से प्रेरित आचार्य और भगवान् के अवतार संसार में अवतरित हुए हैं, परन्तु किसी ने भी स्वर्णिम अवतार भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु की तरह भगवत् प्रेम नहीं बाँटा (महाप्रभु का अर्थ है महान् स्वामी) ।
श्री चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य १४८६ में बंगाल में हुआ और उन्होंने लोगों की आध्यात्मिक चेतना में क्रान्ति ला दी, और उनकी कालातीत शिक्षाओं का प्रभाव आज तक चला आ रहा है। भगवान् चैतन्य ने भगवान् के पवित्र नाम के सामूहिक कीर्तन का प्रवर्तन इस युग के लिए निर्धारित पद्धति के रूप में किया, जो कि एक ऐसी व्यावहारिक प्रक्रिया है, जिसका आचरण कोई भी व्यक्ति द्वारा भगवान् से सीधे जुड़ने के लिए किया जा सकता है
यद्यपि वे स्वयं पूर्णतया वैरागी संन्यासी थे, फिर भी उन्होंने बताया कि मनुष्य किस तरह अपने घर में, पेशे में और सामाजिक व्यवहारों में धार्मिक चेतना के साथ कार्य कर सकता हैं। यह पुस्तक इस महान् संत के असाधारण जीवन का वर्णन करती है और उनकी शिक्षाओं की संक्षेप में व्याख्या करती है।
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